दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क चलाने वाली कंपनी फेसबुक एक नई डिजिटल करेंसी लेकर आने वाली है| पिछले हफ्ते कंपनी ने लिब्रा नाम की एक नई करेंसी लाने की घोषणा कर दी है| कंपनी अपने विज्ञापन को आसान ट्रांजेक्शन और ऑनलाइन पेमेंट की मदद से और कीमती बनाना चाहती है। फेसबुक की इस सेवा का इस्तेमाल बिना क्रेडिट कार्ड या बैंक अकाउंट से भी किया जा सकेगा। इस कदम का मकसद मौजूदा उपलब्ध स्मार्ट साधनों के जरिये कम लागत वाली वैश्विक भुगतान प्रणाली तैयार करना है।
लिब्रा भी उन्ही सिक्योरिटी और रिकॉर्ड नियमों का पालन करती है, जिन्हें बिटक्वॉइन फॉलो करती है। लेकिन बिटक्वॉइन के इतर लिब्रा को कई प्रमुख ट्रेडिशनल कंपनियों का समर्थन प्राप्त है। इन कंपनियों में पेपाल, वीजा और मास्टरकार्ड शामिल हैं। लिब्रा को अमेरिकी डॉलर और यूरोप के यूरो की तरह नई वैश्विक करेंसी बनाने की तैयारी है। इसे गैर-लाभकारी और वित्तीय सेवाओं और ऑनलाइन वाणिज्य से जुड़ी संस्थाओं समेत 25 से ज्यादा साझेदारों का समर्थन हासिल है। फेसबुक की ये करेंसी अगले साल तक जारी हो जाएगी।
क्रिप्टोकरेंसी क्या है
ये कैश मुद्रा का एक डिजिटल रूप है, जिसकी सुरक्षा के लिए एनक्रिप्टेड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। क्रिप्टोकरेंसी किसी फिजिकल बिल या कॉइन के रूप में मौजूद नहीं होती है बल्कि ये कम्प्यूटर कोड के डिजिटल साइन की तरह मौजूद होती है। फेसबुक लिब्रा के लिए एक वॉलेट विकसित कर रही है, जिससे इसे स्टोर किया जा सकेगा।
क्रिप्टोकरेंसी के रूप में लोग लिब्रा को खरीद व बेच सकेंगे। साथ ही इसे ट्रेडिशनल करेंसी से एक्सचेंज भी कर सकेंगे। हालांकि इस बात की अभी जानकारी नहीं है कि लोग किस दर पर इसे ट्रांसफर कर सकेंगे।
बिटकॉइन से कैसे है अलग
गौरतलब है कि बिटकॉइन ने बीते दिनों काफी चर्चा बटोरी, लेकिन इसका इस्तेमाल ज्यादा नहीं होता है। इसका प्रमुख कारण रोज बढ़ती घटती इसकी कीमत है। उदाहरण के लिए- 100 डॉलर बिटकॉइन की कीमत कल 300 डॉलर या 2|5 डॉलर कुछ भी हो सकती है। भारत में आरबीआई ने क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगा रखा है। फेसबुक इसकी वैल्यू स्थिर रखने पर विचार कर रही है।
लिब्रा पूरी तरह से न तो बिटक्वाइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी होगी और न ही मौजूदा बैंकों की तरह काम करेगी| शुरुआत में यह इन दोनों का मिलाजुला रूप होगा| फेसबुक का दावा है कि इसे कारोबार जगत से लेकर आम आदमी आसान और सुरक्षित तरीके से पैसे का लेनदेन कर सकता है|
दुनियाभर में इस प्रोजेक्ट को लेकर तरह-तरह के कयास लगने शुरू हो गए थे| लेकिन उन सारे कयासों पर विराम लग गया जब फेसबुक ने कहा कि वह सस्ती करेंसी लांच करने जा रहा है जिससे बहुत सस्ते में और आसानी से देश विदेश में पैसा भेजा जा सकता है|
लिब्रा पूरी तरह से न तो बिटक्वाइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी होगी और न ही मौजूदा बैंकों की तरह काम करेगी| शुरुआत में यह इन दोनों का मिलाजुला रूप होगा| फेसबुक का दावा है कि इसे कारोबार जगत से लेकर आम आदमी आसान और सुरक्षित तरीके से पैसे का लेनदेन कर सकता है| इसके लिए न तो बैंक की जरूरत होगी और नही बिचौलियों की|
फिलहाल विदेश में पैसा भेजने पर औसतन सात फीसदी रकम बैंक और बिचौलिये के रूप में काम करने वाली कंपनियां सर्विस चार्ज के नाम पर ले जाती हैं| सर्विस चार्ज का यह धंधा तकरीब 50 अरब डॉलर का है|
डिजिटल नोट जारी करने की इस योजना में फेसबुक अकेले नहीं है| वीज़ा और ऊबर सहित करीब 27 बड़ी कंपनियां फेसबुक के साथ इस बड़े ग्लोबल पेमेंट सिस्टम में साथ खड़ी हैं| हर कंपनी कम से कम एक करोड़ डॉलर लगा रही है| नई करेंसी की देखरेख स्विट्जरलैंड स्थित एक नॉन प्रॉफिट संस्था लिब्रा एसोसिएशन कर रही है|
फेसबुक ने केवल करेंसी ही नहीं लॉन्च किया है बल्कि एक इलेक्ट्रॉनिक बटुआ (वॉलेट) कैलिब्रा भी लांच करने की घोषणा की है| लिब्रा के लिए कई ऐसे बटुए होंगे उनमें से एक फेसबुक का कैलिब्रा भी होगा|
लिब्रा क्रिप्टो करेंसी नहीं है
लिब्रा क्रिप्टो करेंसी इसलिए नहीं है कि क्योंकि इसे कुछ लोग नियंत्रित करेंगे| जबकि क्रिप्टो में ऐसा कोई सिस्टम नहीं होता| वह पूरी तरह से डिसेंट्रलाइज होती है| क्रिप्टो करेंसी से इसकी समानता और मौजूदा सिस्टम से अलग करने वाली केवल एक चीज है और वो है ब्लॉकचेन यानी इलेक्ट्रॉनिक बही-खाता|
ब्लॉकचेन एक तरह की टेक्नोलॉजी है, यह एक प्लेटफॉर्म है जहां डिजिटल करेंसी या किसी भी चीज को डिजिटल बनाकर उसका रिकॉर्ड रखा जा सकता है| यानी ब्लॉकचैन एक डिजिटल लेजर है| वहीं बिटक्वॉइन और लिब्रा एक तरह से डिजिटल माध्यम है, जिसके जरिए कोई चीज खरीदी या बेची जा सकती है|
ब्लॉकचेन 2008 में डिजाइन किया गया था| इसमें प्रत्येक ब्लॉक एक मेगाबाइट पर फिक्स होता था| अब लेनदेन की गति बढ़ाने वाली तकनीक का इंतजार हो रहा है|
लेनदेन की स्पीड
ब्लॉकचेन तकनीक के बारे में बताते हुए संजय शर्मा कहते हैं, “बिटकॉइन प्रति सेकेंड सिर्फ सात लेनदेन (transactions) कर सकता है| इसकी तुलना में लिब्रा प्रति सेकेंड 1000 लेनदेन कर सकता है| इस दौरान बिटकॉइन का मूल्य तेजी से घटता बढ़ता है, लेकिन लिब्रा मजबूत पकड़ के साथ अपना मूल्य स्थिर रख सकता है| लिब्रा का मकसद है कि पब्लिक इसे स्वीकारे| इसके लिए लिब्रा का फोकस मुख्यत: प्रतियोगी ट्रांजेक्शन फीस और स्थिर मूल्य पर है|”
निजी कंपनियों का सपोर्ट
इस पेमेंट सिस्टम में फेसबुक अकेला नहीं होगा| वीसा, उबर समेत सौ से ज्यादा प्राइवेट प्लेयर होंगे जो इस सिस्टम को मॉनिटर करेंगे| फिलहाल इनकी संख्या करीब 27 है, लेकिन इसे सौ तक ले जाने की योजना है| फिलहाल लिब्रा को कोई कानूनी आधार नहीं मिला है और न ही सरकारों का समर्थन| ऐसे में इस नई डिजिटल करेंसी की राह आसान नहीं होगी|