सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम – 2000 क्या हैं?

सूचना प्रोधोगिकी अधिनियम -2000

सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम – 2000 (Information Technology Act – 2000)

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 या आईटीए, 2000 या आईटी अधिनियम, 17 अक्टूबर, 2000 को अधिसूचित किया गया था। यह कानून है जो भारत में साइबर अपराध और इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य से संबंधित है।

1996 में, संयुक्त राष्ट्र आयोग ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानून (UNCITRAL) को विभिन्न देशों में कानून में एकरूपता लाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स (ई-कॉमर्स) पर मॉडल कानून को अपनाया। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने सिफारिश की कि सभी देशों को अपने स्वयं के कानूनों में बदलाव करने से पहले इस मॉडल कानून पर विचार करना चाहिए। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 को पारित करने के बाद साइबर कानून को सक्षम करने वाला भारत 12 वाँ देश बन गया। जबकि पहला मसौदा वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा ECommerce अधिनियम, 1998 के रूप में बनाया गया था, इसे सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक, 1999 ’के रूप में फिर से तैयार किया गया था, और मई 2000 में पारित किया गया था।

आईटी अधिनियम – 2000, पुराने कानूनों को बदलने का प्रयास और साइबर अपराधों से निपटने के लिए तरीके प्रदान करता हैं। अधिनियम बहुवांछित कानूनी ढाँचा प्रदान करता हैं, जिससे जानकारी को कानूनी प्रभाव, वैधता या लागूकरण से वंचित नहीं रखा जाएगा, केवल उसी स्थिति में की, पूरी जानकारी इलेक्‍ट्रॉनिक रिकॉर्ड को माध्‍यम से इस अधिनियम को स्‍वीकार करने, बनाने और डिजिटल स्‍वरूप में सरकारी दस्‍तावेजों के प्रतिधारण सरकारी विभागों को सशक्‍त बनाने का प्रयास हैं। इस अधिनियम में इलेक्‍ट्रॉनिक रिकॉर्डों की उत्‍पत्ति एवं प्रमापीकरण, डिजिटल हस्‍ताक्षर के माध्‍यम से एक कानूनी ढांचे का प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत किया है। आईटी अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्‍नलिखित हैं –

  • अधिनियम का द्वितीय अध्‍याय कहता है कि कोई भी ग्राहक अपने डिजिटल हस्‍ताक्षर जोड़कर एक इलेक्‍ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्रमाणित कर सकता है। कोई भी व्‍यक्ति ग्राहक की सार्वजनिक कुंजी के प्रयोग से एक इलेक्‍ट्रॉनिक रिकॉर्ड को सत्‍यापित कर सकते है।
  • अधिनियम का तृतीय अध्‍याय इलेक्‍ट्रॉनिक गवर्नेस के बारे में डिजिटल हस्‍ताक्षर की कानूनी मान्‍यता का विवरण देता है।
  • अधिनियम का चतुर्थ अध्‍याय “विनिमय के प्रमाण-पत्र” अधिकारियों का प्रमाण-पत्र के लिए एक योजना देता है। यह अधिनियम प्रमाण-पत्र प्राधिकरणों के नियंत्रक की परिकल्‍पना पूर्ण करता है, जो अधिकारियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने का काम करेंगा, क्‍योंकि प्रमाण-पत्र प्राधिकरणों पर शासन करने वाले मानक तथा शर्तों को भी विभिन्‍न रूपों और डिजिटल हस्‍ताक्षर प्रमाण-पत्र प्रदर्शित करेगा। अधिनियम विदेशी अधिकारियों को पहचानने आवश्‍यकता को मान्‍यता देता है। लाइसेंस प्राप्‍त करने के लिए प्रावधानों के मुद्दे जारी करते हुए डिजिटल हस्‍ताक्षर प्रमाण-पत्र की अधिक जानकारी देता है।
  • अधिनियम का षष्‍ठ्म अध्‍याय डिजिटल हस्‍ताक्षर प्रमाण-पत्र से सम्‍बन्धित बातों की योजना का विवरण देता हैं। उपभोक्‍ताओं के कर्त्‍तव्‍य/शुल्‍क भी इस अधिनियम में निहित है।
  • अधिनियम का नवम् अध्‍याय पेनल्‍टीज/दण्‍ड/जुर्माना और विभिन्‍न अपराधों के लिए अधिनिर्णयन कानूनके बारे में विवरण देता हैं। प्रभावित व्‍यक्तियों को हुए निजी नुकसान तथा कम्‍प्‍यूटर प्रणाली आदि के नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में 1 करोड़ रूपए से अधिक दण्‍ड तय नहीं किया गया हैं। अधिनियम एक निर्णायक अधिकारी की नियुक्ति के बारे में कहता हैं। जिसमें वह अधिकारी किसी भी व्‍यक्ति द्वारा किसी भी प्रावधानों का उल्‍लंघन किया गया हैं, इसका निर्णय करेगा यह अधिकारी भारत सरकार या राज्‍य सरकार का समकक्ष अधिकारी होगा, जो एक निर्देशक की रेंज से नीचे नहीं होगा। इस निर्णायक अधिकारी को एक नागरिक न्‍यायालय का अधिकारी दिया गया है।
  • अधिनियम का दशम अध्‍याय ‘साइबर रेगुलेशन अपीलेट ट्रिब्‍यूनल’ की स्‍थापना के बारे में विवरण देता है, जिसमें अपील निर्णायक अधिकारियों द्वारा पारित आदेश के विरूद्ध अपील करना पसन्‍द किया जाएगा।
  • अधिनियम का ग्‍यारहवां अध्‍याय विभिन्‍न अपराधों के बारें में विवरण देता हैं और अपराधों की जांच एक पुलिस अधिकारी जो उपपुलिस अधीक्षक होगा, के द्वारा की जाएगी। इन अपराधों में कम्‍प्‍यूटर स्‍त्रोत दस्‍तावेजों के साथ हस्‍तक्षेप की जानकारी समाविष्‍ट की जाएगी, जिसमें इलेक्‍ट्रॉनिक स्‍वरूप में अश्‍लील प्रकाशन तथा हैकिंग शामिल हैं। यह अधिनियम ‘साइबर विनिमय सलाहकार समिति’ के गठन के लिए भी उपलब्‍ध है, जो सरकार को किसी भी नियम से सम्‍बन्धित या अधिनियम सम्‍बन्‍धी किसी अन्‍य उद्देश्‍य के साथ जुड़ने की सलाह देता है। इस अधिनियम में ‘भारतीय दण्‍ड संहिता – 1860’ ‘भारतीय साक्ष्‍य अधिनियम 1872’ ‘द बैंकर्स बुक साक्ष्‍य अधिनियम – 1891’ रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया एक्‍ट-1934’ को प्रावधानों के अनुरूप बनाने के लिए उनमें संशोधन करने का प्रावधान है।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की विशेषताएं (Features of the Information Technology Act, 2000)

  • सुरक्षित इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के माध्यम से किए गए सभी इलेक्ट्रॉनिक अनुबंध कानूनी रूप से मान्य हैं।
  • डिजिटल हस्ताक्षर के लिए कानूनी मान्यता।
  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और डिजिटल हस्ताक्षर के लिए सुरक्षा उपायों की जगह है
  • अधिनियम के तहत पूछताछ आयोजित करने के लिए सहायक अधिकारियों की नियुक्ति के लिए एक प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया है
  • अधिनियम के तहत एक साइबर नियामक अपील न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान। इसके अलावा, यह न्यायाधिकरण नियंत्रक या सहायक अधिकारी के आदेश के खिलाफ की गई सभी अपीलों को संभाल लेगा।
  • साइबर अपील ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ अपील उच्च न्यायालय में ही संभव है
  • डिजिटल हस्ताक्षर एक असममित क्रिप्टो सिस्टम और एक हैश फ़ंक्शन का उपयोग करेंगे
  • सर्टिफिकेटिंग अथॉरिटीज (CCA) के नियंत्रक की नियुक्ति के लिए प्रावधान और प्रमाणित अधिकारियों के काम को विनियमित करने के लिए। नियंत्रक सभी डिजिटल हस्ताक्षरों के भंडार के रूप में कार्य करता है।
  • अधिनियम भारत के बाहर किए गए अपराधों या उल्लंघन पर लागू होता है
  • वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और अन्य अधिकारी किसी भी सार्वजनिक स्थान पर प्रवेश कर सकते हैं और बिना वारंट के खोज और गिरफ्तारी कर सकते हैं
  • केंद्र सरकार और नियंत्रक को सलाह देने के लिए एक साइबर विनियम सलाहकार समिति के गठन के प्रावधान।

अधिनियम के उद्देश्‍य (Objectives Of The Act)

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 डेटा के एक इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज और संचार या इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य लेनदेन के अन्य इलेक्ट्रॉनिक साधनों के माध्यम से किए गए लेनदेन को कानूनी मान्यता प्रदान करता है।

इसमें सरकारी एजेंसियों के साथ इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग की सुविधा के लिए संचार और सूचना भंडारण के एक पेपर-आधारित पद्धति के विकल्प का उपयोग भी शामिल है। इसके अलावा, इस अधिनियम ने भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872, बैंकर्स पुस्तकें साक्ष्य अधिनियम 1891 और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम 1934 में संशोधन किया। अधिनियम के उद्देश्य इस प्रकार हैं:

इस अधिनियम के मुख्‍य उद्देश्‍य निम्‍न हैं –


  • इलेक्‍ट्रॉनिक डाटा स्थानान्‍तरण (Electronic Data Interchange) को कानूनी मान्‍यता देना।
  • इलेक्‍ट्रॉनिक कॉमर्स (E-Commerce) को विनियमित करना।
  • सरकारी विभागों या एजेंसियों में दस्‍तावेजों को इलेक्‍टॉनिक रूप में जमा करने की सुविधा देना।
  • किसी भी जानकारी या मामले के कानूनी प्रमाणीकरण की आवश्यकता के प्रमाणीकरण के लिए डिजिटल हस्ताक्षर को कानूनी मान्यता दें
  • डेटा के इलेक्ट्रॉनिक भंडारण की सुविधा
  • कानूनी स्वीकृति दें और बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बीच धन के इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करें

दूसरे शब्‍दों मे, यह अधिनियम इलेक्‍ट्रॉनिक रिकॉर्डों, जैसे- डाटा-रिकॉर्ड, चित्र, ध्‍वनि आदि, जो इलेक्‍ट्रॉनिक या माइक्रो फिल्‍म या कम्‍प्‍यूटर जनित माइक्रोफिश्‍च (Microfiche) जिन्‍हें फ्लेट शीट कहा जाता है, के रूप में स्‍टोर किए गए हों, प्राप्‍त किए गए हों या भेजे गए हों, को कानूनी मान्‍यता प्रदान करता है। इस प्रकार यह केवल कागजी दस्‍तावेजों को मान्‍यता देने की कानूनी परम्‍परा से हटने का एक उल्‍लेखनीय चरण है।

अधिनियम का लागू होना (Application Of The Act)

सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम सम्‍पूर्ण भारत में लागू होता है। इसके साथ ही यह उन अपराधों या कार्यों में भी लागू होगा, जो किसी व्‍यक्ति द्वारा भारत से बाहर किए गए हों। लेकिन यह अधिनियम निम्‍नलिखित पर लागू नहीं होगा –

  • परक्राम्‍य लिखत (Negotiable Instruments)
  • पॉवर ऑफ एटॉर्नी (Power Of Attorneys)
  • ट्रस्‍ट (Trusts)
  • वसीयत (Wills) तथा अन्‍य साक्ष्‍य
  • अचल सम्‍पत्तियों का अनुबंध, ब्रिकी या उपयोग सुविधा।
  • संघीय सरकार द्वारा सूचित अन्‍य प्रकार से दस्‍तावेज या लेन-देन (Transactions).

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