परम्परागत प्रकाशन प्रणाली की तुलना मे डीटीपी का उपयोग करना इसलिए सुविधाजनक है कि परम्परागत विधि मे प्रकाशन की सामाग्री तैयार करने का कार्य मुख्यतः बाहरी व्यक्तियो जैसे चित्रकारो डिजायनरो कम्पोजीटरो और प्रूफ रीडरो पर निर्भर करता है जबकि डेस्कटॉप प्रकाशन प्रणाली मे यह कार्य प्रायः एक ही व्यक्ति के अपने हाथ मे होता है बाहरी व्यक्तियो पर निभर्रता के कारण परम्परागत विधि मे कोई प्रकाशन अपने रूप मे तैयार होने तक बहुत समय ले लेता है, जबकि डीटीपी मे यह कार्य बहुत कम समय मे सम्पन्न कर लिया जाता है डेस्कटॉप प्रकाशन मे समस्त कार्य एक ही स्थान पर किया जाता है भले ही कई व्यक्तियो द्वारा किया जा रहा हो इसलिये इसमे स्वभाविक रूप से कम समय लगता है इसलिए इससे कोई भी सामाग्री अपना महत्व खो देने से पहले ही छापकर संबंधित व्यक्तियो तक पहुचाई जा सकती है इससे प्रकाशन का उददे्श्य भी सफल होता है, डीटीपी विधि से प्रकाशन करने मे समय और साधनो की भारी बचत होती है, जिससे प्रकाशन का मूल्य कम होता है और अधिक से अधिक व्यक्तियो तक पहुचांया जा सकता है।
डीटीपी का एक विशेष लाभ यह है कि इसमे तैयार किए गये प्रकाशन को किसी भंडारण माध्यम जैसे हार्ड डिस्क, फ्लॉपी, सीडी, चुम्बकीय टेप आदि पर उतार कर दीर्घ काल तक सुरक्षित रखा जा सकता है और आवश्यकता पडने पर उसको पूर्ण रूप मे या उसके किसी भाग को पुनः छापा जा सकता है अथवा अन्य प्रकाशन मे उपयोग किया जा सकता है परम्परागत विधि की तरह इसमे टाइप सेट किए हुए पेजो को भौतिक रूप मे सुरक्षित नही रखना पडता परम्परागत प्रणाली मे किसी प्रकाशन को फिर से छापने के लिए प्रकाशन की समस्त प्रक्रिया पूरी तरह दोहरानी पडती है, जबकि नवीन प्रणाली मे सारा कार्य अपने अंतिम रूप मे तैयार रखा रहता है, उसे केवल प्रिटिंग प्रेस तक पहुचाना होता है।
कहने का तात्पर्य है कि डीटीपी से हमे वे सभी प्राप्त होते है जो किसी भी कम्प्यूटरीकृत प्रणाली मे प्राप्त किए जा सकते है।